दोस्तों, Inspirational Story in Hindi ये जीवन के नए दिशानिर्देश और उत्साह की स्त्रोत होती हैं। ये कहानियाँ इस तरह से अपना असर छोड़ती हैं हमारे दिल और दिमाग पर कि जिस वजह से हम अपनी मेहनत और संघर्ष से सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं, और इस वजह से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना संभव हो जाता है।
ये कहानियाँ जीवन के सत्य को दिखाती हैं एवं समझाती हैं कि समस्याओं और परेशानियों का सामना करते समय हार नहीं मानना चाहिए, बल्कि हमें उनसे आगे बढ़ने का तरीका ढूंढ़ना चाहिए। कुछ ऐसी ही संघर्षपूर्ण कहानी हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं जिनके बारे में आप जीतना पढ़ेंगे उतना उनके बारे में और ज्यादा जानने की उत्सुकता बढ़ेगी।
ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो अपनी भूख मिटाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर जाता था, इस व्यक्ति के पास रहने भर तक के लिए जगह नहीं थी रात गुज़ारने के लिए अपने दोस्त के घर ज़मीन पर सोया करता था। इस व्यक्ति का जीवन बेहद ही कठिनाइयों से भरा था लेकिन उस व्यक्ति ने जीवन में समय के साथ समन्वय बिठाया और अपना जीवन ही बदल दिया।
हम बात कर रहे हैं Apple कंपनी के फाउंडर Steve Jobs की, जिनका मानना था की व्यक्ति को बाहरी नहीं बल्कि अपनी आंतरिक आवाज़ को सुनना चाहिए क्यूंकि आपकी आंतरिक आवाज़ को सच में पता होता है की आपको जीवन में क्या करना है। और यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो अपनी आंतरिक आवाज़ को सुनिए और आगे बढिये।
तो आइए पढ़ते हैं ये बेहद खास Inspirational Story in Hindi जो बताती है की स्टीव जॉब्स इतने सफल व्यक्ति कैसे बने.
Steve Jobs का प्रारम्भिक जीवन- Inspirational Story in Hindi
स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया शहर में स्थित सैन फ्रांसिस्को में हुआ था। आपमें से ज्यादातर लोगों को ये पता नहीं होगा की स्टीव जॉब्स का उपनाम यानि की सरनेम जॉब्स नहीं था। दरअसल स्टीव जॉब्स के असली माँ बाप की शादी नहीं हुई थी इसलिए जब स्टीव जॉब्स छोटे थे तो वो उन्हें किसीको गोद दे देना चाहते थे। तभी पॉल जॉब्स और क्लोरा जॉब्स नाम का एक अमेरिकी कपल था जिन्होंने इन्हे गोद ले लिया और तबसे इनका सरनेम बन गया जॉब्स और पूरा नाम बन गया स्टीव जॉब्स।
क्लोरा जॉब्स, स्टीव जॉब्स की माँ ने कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त नहीं की थी और पॉल जॉब्स ने तो केवल उच्च विद्यालय तक की ही पढ़ाई कर रखी थी।
Inspirational Story in Hindi
स्टीव जॉब्स केवल 5 वर्ष के ही थे तब उनका परिवार सैन फ्रांसिस्को से माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया में शिफ्ट हो गया था। पॉल जॉब्स पेशे से एक मैकेनिक और एक बढ़ई के रूप में काम किया करते थे और वह अपने बेटे को इलेक्ट्रॉनिक्स चीज़ों से खेलने देते थे तथा वह उन्हें ये भी सिखाते थे की ‘अपने हाथों से काम कैसे करना है’, वहीं दूसरी और क्लोरा जॉब्स एक अकाउंटेंट थीं और वे स्टीव को पढ़ना सिखाती थीं। इन्होने बाद में एक गैरेज खोल लिया था और वहीं दूसरी तरफ जॉब्स की दिलचस्पी भी शुरु से ही इलैक्ट्रॉनिक्स में ही थी।
स्टीव जॉब्स की प्राथमिक शिक्षा मोंटा लोमा प्राथमिक विद्यालय में हुई थी और उच्च शिक्षा कूपर्टीनो जूनियर हाइ और होम्स्टेड हाई स्कूल से हुई थी। उच्च विद्यालय के स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए 1972 में जॉब्स ने ओरेगन के रीड कॉलेज में दाखिला लिया मगर रीड कॉलेज बहुत महँगा था और उनके माता-पिता के पास उतने पैसे नहीं थे। घर की आर्थिक परेशानियों को देखते हुए उन्हें ये समझ में आ गया था कि वे आगे की पढाई जारी नहीं रख पाएंगे इसी वज़ह से स्टीव ने कॉलेज छोड़ दिया और क्रिएटिव क्लासेस में दाखिला ले लिया, जिनमे से एक कोर्स कैलीग्राफी पर था। कैलीग्राफी, कला होती है जिसमे अक्षरों को क्रिएटिव एवं अच्छे तरीके से लिखना सिखाया जाता है ।
इसी क्लास के दौरान स्टीव जॉब्स की दोस्ती वोजनियाक नामक व्यक्ति से हुई, इनकी दोस्ती इसलिए भी दिलचस्प थी क्यूंकि इन्हे भी इनकी तरह ही इलैक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर में दिलचस्पी थी।
Steve Jobs के प्रारंभिक कार्य- Inspirational Story in Hindi
स्टीव जॉब्स जो की अपने जीवन के शुरुआती दिनों में काफी आर्थिक तंगी के दौर से निकल रहे थे उनके लिए उस बुरे दौर से गुजरना बड़ा मुश्किल था।उनके पास इतने पैसे भी नहीं हुआ करते थे कि वे भर पेट भोजन कर सकें और अपनी भूख मिटा सकें, वे कोक जैसी सॉफ्ट ड्रिंक्स की बॉटल बेच-बेचकर किसी तरह अपना गुजारा किया करते थे, और इसलिए वे हर संडे राधाकृष्ण मंदिर भी जाते थे कि क्योंकि उन्हें वहां फ्री में भरपेट खाना मिल जाया करता था, सिर्फ इतना ही नहीं ना जाने कितनी राते स्टीव जॉब्स ने अपने दोस्त के कमरे में फर्श पर सोकर गुजारीं थीं।
हालांकि इतने बुरे वक़्त में जब लोग हार मान जाते हैं स्टीव जॉब्स ने कभी हार नहीं मानी
उनके अंदर दृढ़इच्छाशक्ति और प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी।
अपने हुनर के चलते उन्हें साल 1972 में एक वीडियो गेम बनाने
वाली डेवलिंग कंपनी में काम करने का मौका मिल गया,
लेकिन स्टीव जॉब्स इस जॉब से संतुष्ट नहीं थे और आखिरकार उन्होंने ये नौकरी छोड़ ही दी।
उनकी इस नौकरी से उन्हें जो भी पैसे मिले थे उससे वे भारत घूमने के लिए आ गए।
दरअसल, सच बात तो ये है की स्टीव को भारतीय संस्कृति काफी प्रभावित करती थी और
इसके चलते वे यहां आकर अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की दृढ़ इच्छा रखते थे।
साल 1974 में इन्होने करीब 7-8 महीने भारत के उत्तर प्रदेश,
हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में व्यतीत किए और यहां बौद्ध धर्म की शिक्षा ली।
Inspirational Story in Hindi
यहां वे नीम करौली बाबाजी से मिलने आये थे
मगर यहां आकर उन्हें पता चला की उनका निधन तो सितम्बर1973 को हो गया था।
लेकिन वे हरखैन बाबाजी से मिले थे इसी कारण से उन्हें भारत में इतना वक़्त लग गया था।
इसके बाद जब वे अमेरिका वापस लौटे तो वे अब पहले वाले जॉब्स नहीं रहे,
वे पूरी तरह बदल चुके थे उन्होंने अपना मुंडन करवा लिया था
वे साधारण कपडे पहनने लगे थे और उनका मन भी पूरी तरह एकाग्रचित्त हो गया था।
इसके बाद जाकर उन्होंने फिर से जॉब ज्वॉइन कर ली।
एप्पल की खोज और उसे सबसे प्रतिष्ठित कंपनी बनाना
वो सन् 1976 का वक़्त था जब, स्टीव वोज़नियाक ने मेकिनटोश एप्पल 1 कंप्यूटर का आविष्कार किया।
वोज़नियाक ने यह कंप्यूटर स्टीव जॉब्स को दिखाया तो उन्होंने इसे बेचने का सुझाव दिया,
तथा इसपर और काम करने के लिए व इसे बेचने के लिये वे
दोनों स्टीव जॉब्स के पिताजी के गैरेज में एप्पल कंप्यूटर का निर्माण करने लगे।
माइक मर्क्कुल्ला ने उनके इस कार्य को पूरा करने के लिये उन्हें धन राशि प्रदान करी थी
वे अर्द्ध सेवानिवृत्त इंटेल उत्पाद विपणन प्रबंधक और इंजीनियर थे।
इन्होने अपनी कंपनी का नाम “एप्पल कंप्यूटर कंपनी” रखा।
इसके बाद तो मानो जैसे इस कंपनी को पर लग गए और इन्होने लगातार
एक के बाद एक नए अविष्कार किए और सफलता के नए आयामों को छुआ।
साल 1980 में जॉब्स की एप्पल कंपनी एक प्रतिष्ठित एवं विश्व की जानी-मानी कंप्यूटर कंपनी बन गई।
अपनी ही कंपनी से इस्तीफा और फिर वापसी
स्टीव जॉब्स ने एप्पल 3 और अपनी बेटी के नाम पर लिसा कंप्यूटर का नाम रखा और
जब उन दोनों प्रोडक्ट्स को लांच किया तो वे बुरी तरह फ्लॉप रहे।
यही वह दौर था जब उनकी ही कंपनी ने उन्हें रिजाइन करने के लिए मजबूर किया था।
इस फेलियर से सबक लेते हुए फिर बाद में स्टीव ने मैकिनटोश को बनाने में कड़ी मेहनत की
और फिर 1984 में लिसा पर बेस्ड सुपर बाउल का बनाकर इसे मैकिनटोश के साथ फिर से लॉन्च कर दिया,
जिसके चलते इसके बाद उन्हें फिर से कामयाबी हासिल हुई।
बाद में एप्पल और IBM ने साथ मिलकर कंप्यूटर बनाने की शुरुआत की।
और इनके कम्प्यूटर्स बहुत ही अच्छी क्वालिटी के हुए की इसके चलते मार्केट में
इसकी इतनी डिमांड बढ़ गई कि कंपनी पर ज्यादा से ज्यादा सिस्टम बनाने का प्रेशर पड़ने लगा।
स्टीव जॉब्स की शायद ये सबसे बड़ी गलती रही की उन्होंने अपनी कंपनी की कॉन्सेप्ट को
कभी छिपाया नहीं और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा,
क्योंकि कई दूसरी कंपनियों ने इनके कॉन्सेप्ट को चुराकर
उनसे अपने कंप्यूटर बनाकर ग्राहकों को सस्ते दामों पर बेचे
जिसकी वजह से एप्पल को सीधा सीधा काफी नुकसान उठाना पड़ा
और कंपनी को लॉस होने लगा और इसके स्टीव जॉब्स को जिम्मेदार मानते हुए
उनकी ही कंपनी ने उन पर कंपनी छोड़ देने का प्रेशर बनाया,
इसके बाद स्टीव जॉब्स ने 17 सितंबर, 1985 को एप्पल से इस्तीफा दे दिया।
कंपनी के इस फैसले से नाखुश होकर उनके साथ उनके 5 और करीबी सहकर्मियों ने एप्प्ल से इस्तीफा दे दिया।
फिर वापसी
साल 1996 के दौरान एप्पल कंपनी अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रही थी ये वक़्त कंपनी के लिए बहुत कठिन था। इसके चलते स्टीव जॉब्स को एप्पल में वापसी मिली और उन्होंने कंपनी में सीईओ के रूप में ज्वाइन किया और कई नए प्रोडक्ट्स लांच किये, जिनसे उन्हें फिरसे अपार सफलता मिली।
साल 2007 में एप्पल ने अपना पहला मोबाइल फोन लॉन्च किया(एप्पल आई फ़ोन) जिसने मोबाइल की दुनिया में क्रांति ला दी, इसकी लगातार सफलता से कंपनी ने सफलता के नए पायदानों को छू लिया।
नेक्स्ट कम्प्यूटर्स कंपनी की शुरुआत
अब स्टीव जॉब्स ने एप्पल कंपनी से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और सन 1985 में शुरुआत करी नेक्स्ट कंप्यूटर कंपनी की।
वो कहते हैं कि संघर्ष और सच्ची लगन ही इंसान को सफलता की राह पर ले जाती हैं। ठीक इस दौरान उनको एक बड़ा बिजनेसमैन इन्वेस्टर पैरॉट मिल गया जिसने उनकी इस कंपनी के लिए इन्वेस्ट किया और फिर उनकी किस्मत ने भी साथ दिया।
साल 1988 और तारीख 12 अक्टूबर को एक इवेंट के दौरान नेक्स्ट कंप्यूटर को लांच किया गया, जो की अपने आप में बेमिसाल था क्यूंकि ये भी एप्पल की ही तरह काफी एडवांस्ड कंप्यूटर था। इस वजह से ये काफी महंगा भी था जिसके चलते इसकी बिक्री में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ और इसे काफी नुकसान उठाना पड़ा।
इसके बाद स्टीव जॉब्स को लगा की नेक्स्ट को कम्प्यूटर्स में ज्यादा सफलता नहीं मिल पाएगी उन्हें इस बात का एहसास हो गया और उन्होंने नेक्स्ट कम्यूटर कंपनी को एक सॉफ्टवेयर कंपनी बना दिया जिसमे उन्हे अपार सफलता मिली।
स्टीव जॉब्स ने की डिज्नी के साथ पार्टनरशिप
1986 में स्टीव जॉब्स ने पिक्सर मूवी कंपनी खरीद ली और डिज्नी के साथ मिलकर पार्टनरशिप करी और आगे बढ़ते चले गए।
पर्सनल लाइफ
स्टीव जॉब्स की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उनकी एक बहिन भी हैं जिनका नाम मोना सिम्पसन है।
स्टीव की लव पार्टनर क्रिस्टन ब्रेनन से उन्हें 1978 में एक लड़की पैदा हुई जिसका नाम उन्होंने लिसा रखा।
इसके बाद साल 1991 में उन्होंने लॉरेन पॉवेल से शादी रचाई और
उनसे उनके 3 बच्चे हुए जिनमे एक लड़का साल 1991 में पैदा हुआ जिसका नाम उन्होंने रीड रखा,
इसके बाद इनकी बड़ी बेटी हुई साल 1995 में जिसका नाम इन्होने एरिन रखा
और छोटी बेटी साल 1998 में हुई जिसका नाम इन्होने ईव रखा।
स्टीव जॉब्स के पुरस्कार एवं सम्मान
एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स को उनके जीवन में तमाम पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
टाइम मैगज़ीन ने साल 1982 में उनके द्वारा बनाये गए एप्पल कम्प्यूटर्स को मशीन ऑफ़ थे ईयर का खिताब देकर सम्मानित किया।
साल 1985 में उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा नेशनल मैडल ऑफ़ टेक्नोलॉजी मिला।
अमेरिका के राष्ट्रपति के द्वारा स्टीव जॉव्स को “नेशनल मैडल ऑफ टेक्नोलॉजी” से नवाजा गया था। उसी साल उन्हें टेक्नोलॉजी में नए आयामों को छूने के लिए सम्मुएल एस बियर्ड पुरस्कार मिला।
स्टीव जॉब्स को “कैलिफ़ोर्निया हाल ऑफ फेम” से सम्मानित किया गया था।
स्टीव जॉब्स का निधन
जॉब्स को साल 2003 में एक गंभीर बिमारी पैंक्रिएटिक कैंसर ने जकड़ लिया
जिससे वे कई सालों तक जूझते रहे। लेकिन आखिरकार 5 अक्टूबर 2011
को उन्होंने अपने घर में शाम 3 बजे के आसपास दम तोड़ दिया।
उनके निधन की खबर सुनकर पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ गयी और
माइक्रोसॉफ्ट और डिज्नी जैसी बड़ी कंपनियों ने भी उनके निधन पर शोक मनाया।
Conclusion :
स्टीव जॉब्स से हमे ये सीखने को मिलता है की दुनिया कैसे जीती जाती है। मार्केटिंग कैसे की जाती है और दुनिया में कैसे जीया जाता है। उनकी ये सीख थी की अपना हर दिन ऐसे जियो जैसे की आखरी हो। वो हर दिन अपना इस तरह से जीते थे की जैसे वो उनका आखरी दिन हो और शायद इसी वजह से वो इस दुनिया को जीत पाए।
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