सोच यानी विचार एक तरह का चित्र है जो आपके चित्त पर बनता बिगड़ता है। आप क्या सोचते हैं? आपकी यादों में जो मौजूद है, उसी को टटोलने का नाम सोच है। सोच मनोविज्ञान का एक सतही विषय है जिससे हम सब परिचित हैं। आज इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
सोच क्या है?
sसोच या विचार मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय है। इसको समझने के लिए आप एक उदाहरण पर गौर करें। एक समंदर है जिसमे लगातार कई सारी लहरें उठ रही, फिर गिर रही हैं। सोच भी एक तरह की लहर है, जो हमारे चित्त पर` उभरती है, फिर गायब हो जाती है। ये सोच वास्तव में हमारे अवचेतन मन में मौजूद जन्मों की यादें है जो बार बार नए ढंग से चित्त पर प्रकट होती है।
हम जो सोचते हैं वो वास्तव में नया नहीं होता बल्कि वो पुनरावृति होता है। हमारे अवलोकन मन में जन्मों जन्मों का अनुभव मौजूद है। इन पुराने अनुभवों को ही हम सोच के तौर पर पर प्रकट करते हैं। आप ऐसा सोचते होंगे की आप की सोच बिलकुल अलग और नयी है पर वास्तव में आप अलग और नए नहीं हैं, आपकी भी सोच बिलकुल पुरानी और सबके जैसी ही है। यूँ कहें तो आपका पूरा व्यक्तित्व आपकी सोच से प्रभावित नहीं होता।
सोच और जीवन
हम सब ऐसा समझते हैं की हमारी सोच हमारे जीवन की मार्गदर्शक होती है और यही हमारे जीवन को गति देती है। हमें लगता है की सोच सबसे बड़ी चीज़ है जो हमारे जीवन को मात्र प्रभावित नहीं बल्कि संचालित भी करती है। आप अगर थोड़े गहरे जाकर विचार करें तो आप पाएंगे की ऐसा कुछ नहीं है, सोच सिर्फ और सिर्फ एक पर्दा है, सोच हमारे मन को गति देती है जीवन को नहीं।
आप अपने जीवन में जो कुछ भी कर सकते है उससे आपकी सोच का कोई मतलब नहीं। सोच आपको सिर्फ भ्रम देता है, इसको समझने के लिए आप एक बार विचार करें की आप अपने जीवन में कितने फैसले सोच के लेते हैं। आपका अधिकतर फैसला आपकी भावनाओं से प्रेरित होता है, न की सोच से। सोच एक सतह है जो बुद्धि को प्रभावित करती है।
जीवन में विचारशील होना है जरुरी
बुद्धि हमारे जीवन के बाहरी हिस्सों को प्रभावित करता है, पर पुरे जीवन को हम भावना के तल पर या उससे उप्पर के तल पर जीते हैं। बुद्धि या सोच एक तरह का विरोधाभास है। एक ही चीज़ जो आपकी बुद्धि या सोच के हिसाब से सही है वो दूसरे के हिसाब से गलत है। जैसे मैं एक तर्क से ये साबित कर सकता हूँ की शराब पीना गलत नहीं है और आप इसके विपरीत ये साबित कर सकते हैं की शराब पीना गलत है। इस स्तिथि में दोनों तर्क सही होगा यानी दोनों लोगों की सोच सही है, मगर ऐसे तो जीवन बड़ी मुश्किल में आ जायेगा। इसलिए हम सोच या बुद्धि से नहीं जीते।
सोच और बुद्धि जीवन के बाहरी हिस्सों को संपन्न करने के लिए जरुरी है। समाज, विज्ञान, तकनीक,विकास इत्यादि इन सबको समृद्ध बनाने के लिए विचारशील होना जरुरी है। बुद्धिमान होना बहुत आवश्यक है पर सिर्फ जीवन के बाहरी हिस्सों के लिए। जीवन के केंद्र पर विचार, बुद्धि, तर्क ये सब बेकार हो जाते हैं और अगर आप फिर भी बुद्धि, सोच, तर्क इत्यादि से चिपके रहे तो जीवन आपके लिए मुश्किल भरा हो सकता है।
जीवन सोच से आगे
हम सोचते हैं, पर अगर हम सिर्फ सोचते रहते हैं तो जीवन से चूक जाते हैं। जीवन को बाहर से सुरक्षित करने के लिए विचारशील होना जरुरी है। जो लोग विचारशील नहीं हैं वो समाज के संक्रमण से ग्रस्त हैं, उनके पास विचार नहीं हैं, विरोध नहीं है। वो खुद को समाज के दिए हुए अमानवीय पहचानों से जोड़े रखे है। कोई हिन्दू है, कोई मुस्लिम है, कोई सिख है, कोई ईसाई है,कोई आस्तिक है, कोई नास्तिक है। एक विचारशील आदमी विद्रोही होता है, वो सोचता है की वो हिन्दू क्यों है, वो कभी भी राजनीतिक एजेंडा की वजह से खुद को कोई पहचान नहीं देता। विचारशील होना आवश्यक है वरना आप भी अंधविश्वासी हो जाएंगे, आप भी मरे हुए लोगों की तरह हो जाएंगे जो सिर्फ एक भीड़ है।
विचारशील होने का अर्थ है, एक जिज्ञासा का होना एक गहन खोज की आकांक्षा का होना। विचारशील व्यक्ति बहुत अहंकारी होता है, वो अपने विचार से हर बात की जांच करता है तब कहीं जाके वो किसी निर्णय पर पहुँचता है। जबकि जो लोग विचार नहीं करते वो कमजोर होते हैं, उनके पास बुद्धि और तर्क की ताकत नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपना एजेंट बना लेता है। जैसे धार्मिक राजनीति में जितने लोग हैं, उनके पास विचार की शक्ति नहीं है। विचारशील होना जरुरी है ताकि आप समाज के बंधनों से खुद को मुक्त कर पाएं।
जीवन विचारों से प्रभावित नहीं होता
पर जीवन वास्तव में विचार से बहुत कम प्रभावित होता है।
हमारे अधिकतर फैसले भावनाओं और उसके उप्पर के मूल्यों से प्रभावित होता है।
एक उदहारण पर गौर करें की आपने आज की सुबह के सभी कामों के बारे में विचार किया
और एक योजना तैयार की, पर रात में आप पाएंगे की आपका जीवन विचार पर नहीं चल रहा,
आपकी योजना हमेशा विफल होती है।
जीवन एक गुलाब के फूल की गंध की तरह होता है
और जबकि विचार मुरझाये हुए फूलों की गंध हैं।
समस्या तब होती है जब बुद्धिमान लोग जीवन को विचारों, शब्दों,
आदर्शों, शास्त्रों इत्यादि पर चलने की कोशिश करते हैं।
ये सब अतीत की मरी हुयी लाशें हैं जिन पर जीवन को नहीं चलाया जा सकता।
जीवन निरंतर ही नया है,
इसमें बदलाव की स्वीकृति है और जरुरी भी यही है।
अगर जीवन हमारे विचार से सम्बंधित होता तो कुछ भी नया नहीं होता, क्यूंकि सारे विचार अतीत के हैं।
सारे शास्त्र, सारे आदर्शवाद, सारा धर्म ये सब अतीत के विचारों का संग्रह है
जिनपर जीवन एक मरुस्थल जैसा मालूम होगा।
हमे अगर जीवन से चूकना नहीं है, तो नए को लेकर स्वीकृति भाव प्रस्तुत करें।
नयी पीढ़ी को लेकर एक आदर भाव हो क्यूंकि जीवन ऐसे ही चलता है, हर दिन एक नया दिन है।
बुज़ुर्ग व्यक्तियों के तरह अतीत से चिपके न रहें अतीत सिर्फ विचार है और वर्तमान जीवन है।
Conclusion
विचारशील होना बहुत जरुरी है,
पर विचार हमारे जीवन के बीच ना आये इसका ध्यान भी रखना होगा।
जीवन के बाहर विचार का पहरा हो,
पर अंदर जीवन का आनंद हो जिसमे भविष्य को लेकर एक स्वीकृति हो,
अतीत से जन्मे सोच इसमें बाधा न बने।
जीवन एक अनमोल कृति है, इससे चूकना नहीं है।
बल्कि इसे सजाना है और ध्यान रहे की जीवन को सजाने में सोच कहीं बाधा ना बने।
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